
सन् २०१२ को सूर्य साधना वर्ष घोषित किया गया है। गायत्री उपासना के साथ सूर्योपासना सहज ही जुड़ी रहती है।
गायत्री मंत्र के ऋषि विश्वामित्र तथा देवता सविता हैं। गायत्री मंत्र जप के साथ उगते सूर्य का ध्यान करते हुए उसके दिव्य तेज को आत्मसात करने का भाव अधिकांश गायत्री उपासक करते हैं। फिर भी इस वर्ष गायत्री परिवार के सभी साधकों को विशेष रूप से सूर्य साधना स्वयं भी करनी चाहिए और अपने प्रभाव क्षेत्र के व्यक्तियों-संगठनों को भी इसके लिए प्रेरित-प्रशिक्षित करना चाहिए।
वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार प्रत्येक ११ वर्ष के अंतराल में सूर्य मण्डल में विशेष हलचलें होती हैं। इन हलचलों को विज्ञान की भाषा में सौर ऊर्जा के तूफान (सोलर स्टॉम्र्स) भी कहा जाता है। इसके कई प्रकार के स्थूल और सूक्ष्म प्रभाव भूमंडल पर पड़ते हैं। सूर्य मण्डल में इस प्रकार की विशेष हलचल सन् २०१२-१४ के बीच होने का अनुमान अंतर्राष्टïरीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (नासा) के वैज्ञानिकों का है। इसी तरह २२ वर्ष के अंतराल में सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में भी परिवर्तन होता है। सन्ï २०१२ के आसपास यह दोनों चक्र एक साथ घटित होने वाले हैं।
सूर्य मात्र आग का गोला नहीं है। उसके प्रभाव से धरती की तमाम पदार्थपरक और चेतना परक गतिविधियाँ चलती हैं। भारतीय ऋषियों के इस विचार से वर्तमान वैज्ञानिक भी बहुत अंशों तक सहमत हैं। अनेक अध्ययनों के आधार पर यह सिद्ध हुआ है कि सूर्य मण्डल में विशेष हलचलों के दौरान भूमंडल पर भी विशेष हलचलें होती हैं। जैसे :-
- धरती के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन होता है। इस बार सूर्य के ध्रुवीय स्थानान्तरण के साथ पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में काफी गिरावट आने की संभावना से वैज्ञानिक सहमत हैं। इससे अनेक तरह के प्राकृतिक उलटफेरों का सामना करना पड़ सकता है।
- मनुष्य के चिंतन पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। अनजाने-अनचाहे मानसिक असंतुलनों का सामना करना पड़ सकता है। इसका सीधा प्रभाव व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन पर पड़ता है।
- सूर्य का सीधा संबंध मनुष्य के नाभिचक्र से है। नाभिचक्र का काया की ऊर्जा एवं आरोग्य से सीधा सम्बंध है। उसका संतुलन बिगड़े तो शरीर के ऊर्जाक्षय तथा रोगों के उभार की समस्या सामने आ जाती है।
इन सब विसंगतियों से बचने तथा सौर ऊर्जा चक्र के प्रभाव का सकारात्मक उपयोग करने के लिए सूर्य उपासना बहुत लाभकारी होती है। ठंड आने पर यदि व्यक्ति अपने जीवन क्रम में उचित बदलाव न लाये तो सर्दी, जकडऩ, निमोनिया जैसे रोगों का आक्रमण होने लगता है। और यदि उसके अनुकूल जीवनक्रम बनाये तो वही ठंड स्वास्थ्यवर्धक वरदान बन जाती है। इसी प्रकार सूर्य मंडल में होने वाली ऊर्जा हलचलों के कुप्रभाव से बचने तथा उनका समुचित लाभ उठाने के लिए सूर्य उपासना बहुत लाभदायक सिद्ध होती है। इसलिए सभी विचारशीलों को इस वर्ष सूर्य साधना में विशेष रुचि लेनी चाहिए। स्वयं भी इसे अपनायें और अपने प्रभाव क्षेत्र के व्यक्तियों को भी इसके लिए प्रेरित-प्रशिक्षित करें। यहाँ सूर्य साधना के कुछ उपयोगी बिंदु प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
सूर्य साधना के सूत्र
व्यक्तिगत-
- नियमित गायत्री मंत्र का जप करें, उसके साथ सूर्य गायत्री भी जपें।
ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि, तन्न: सूर्य: प्रचोदयात्
अथवा
ॐ घृणि सूर्याय नम:
जप के साथ उगते सूर्य का ध्यान करें। यदि कुछ देर प्रत्यक्ष सूर्यदर्शन करें तो उत्तम है अन्यथा दीपक की ज्योति के सहारे से आज्ञाचक्र में सूर्य मण्डल का ध्यान करें। - जिस प्रकार सूर्य पूर्व से उगता है, किंतु उसका प्रकाश सभी दिशाओं में फैल जाता है, उसी प्रकार अपने चारों ओर सूर्य के स्वर्णिम प्रकाश का बोध करें। रोम-रोम से उस दिव्य ऊर्जा को आत्मसात करने का भाव करें। मंत्र जप से उस प्रक्रिया को गति मिलती है।
- भावना करें कि सूर्य का दिव्य तेज इंद्रियों से असंयम दूर करके उन्हें पवित्र बना रहा है। शरीर का हर कोष ऊर्जित हो रहा है। मस्तिष्क के विचारों और हृदय के भावों को भी पवित्र और प्रखर बनाया जा रहा है।
- उपासना के बाद सूर्य अघ्र्यदान करें। भावना करें कि जिस प्रकार सूर्यदेव अघ्र्य पात्र के थोड़े से जल को विराट में फैला देते हैं, वैसे ही हमारी मंगलकामनाओं को भी विराट प्रकृति में फैला दें।
- थोड़ा सा जल बचाकर उसे हथेलियों और मस्तक पर लगाकर सर्य उपस्थान करें। माथे और हथेलियों को सूर्य की ओर करके गायत्री मंत्र जपते हुए उनके दिव्य प्रसाद को ग्रहण करने का भाव करें। फिर मस्तक, कंठ आदि पर हाथ फेरकर प्रणाम करें।
- रविवार को एक दिन का उपवास सुविधानुसार (अस्वाद व्रत, एक समय आहार, शाकाहार, पेय आदि पर रह कर ) किया जा सकता है। उस दिन ब्रह्मïचर्य पालन तथा लोकहित के सेवाकार्य करने का भी विशेष लाभ प्राप्त होता है।
- प्रतिदिन युगऋषि द्वारा निर्देशित अनुलाम-विलोम सूर्यवेधन प्राणायाम का अभ्यास ५ मिनट किया जाय तो विशेष लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
सामूहिक -
- रविवार को जिस प्रकार साप्ताहिक सामूहिक यज्ञ-दीपयज्ञ आदि किये जाते हैं, उस प्रकार सामूहिक सूर्योपासना का १ घंटे का क्रम भी चलाया जा सकता है।
- इसमें दीप प्रज्वलन, सामूहिक पवित्रीकरण, प्राणायाम, सामूहिक सस्वर गायत्री मंत्र ७ बार, सूर्य गायत्री ३ बार, महामृत्युंजय मंत्र ३ बार करके १० मिनट मानसिक जप एवं सूर्य ध्यान। फिर सामूहिक सूर्य अघ्र्यदान। सामूहिक गेय प्रार्थना। युगऋषि की अमृतवाणी पढक़र सुनाना। किए गये सेवाकार्यों का संक्षिप्त विवरण के बाद शांतिपाठ।
- इस क्रम को क्रमश: पीठों, प्रज्ञाकेन्द्रों, मंदिरों या क्रमश: विभिन्न श्रद्धालुओं के घरों पर चलाया जा सकता है। इसमें अंत में प्रज्ञायोग व्यायाम, सूर्य नमस्कार, प्राणायाम आदि का प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।
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