Sunday, September 5, 2010

Aum Bhoor Bhuvah Swah Tatsavitur varenyam
Bhargo Devasya Dheemahi Dhiyo Yo Nah Prachodayat.

Thursday, August 19, 2010

Vasu Birla


ओ३म् भूर्भुव: स्व: |
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि |
धियो यो न: प्रचोदयात् ||
तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू |
तुझ से ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता तू ||
तेरा महान तेज है, छाया हुआ सभी स्थान |
सृष्टि की वस्तु वस्तु में, तु हो रहा है विद्यमान ||
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया |
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ||
भावार्थ _ हे परमेश्वर! आप हमारे प्रियतम् प्राण हो | हमें अशुभ संकल्पों तथा भौतिक विपत्तियों से हमें दूर रखें | हम आपके शुद्ध प्रकाशमय स्वरुप का दर्शन अपने अन्त: करण मे नित्य किया करें | हे दिव्य प्रकाशक हमें प्रकाश की ओर ले चल| आपका प्रकाशमय स्वरुप हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रवृत्त करें | हम न केवल अभ्युदय अपितु नि:श्रेयस भी प्राप्त करें |

gayatri mantra


ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

गायत्री मंत्र संक्षेप में

गायत्री मंत्र (वेद ग्रंथ की माता) को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है.
हे प्रभु! आप हमारे जीवन के दाता हैं
आप हमारे दुख़ और दर्द का निवारण करने वाले हैं
आप हमें सुख़ और शांति प्रदान करने वाले हैं
हे संसार के विधाता
हमें शक्ति दो कि हम आपकी उज्जवल शक्ति प्राप्त कर सकें
क्रिपा करके हमारी बुद्धि को सही रास्ता दिखायें

मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या

गायत्री मंत्र के पहले नौं शब्द प्रभु के गुणों की व्याख्या करते हैं
ॐ = प्रणव
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला
तत = वह, सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल
वरेण्यं = सबसे उत्तम
भर्गो = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य = प्रभु
धीमहि = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि, यो = जो, नः = हमारी, प्रचोदयात् = हमें शक्ति दें